ईन्द्रियों के गुलाम नहीं, स्वामी बनिए !
जो आदमी केवल ईन्द्रिय-सुखों और शारीरिक वासनाओं की तृप्ति के लिए जीवित है और जिस के जीवन का उदेश्य ' खाओ, पीओ, मौज उडाओ' है | निस्संदेह वह आदमी परमात्मा की ईस सुन्दर पृथ्वी पर एक कलंक है, भार है | कयों कि उसमे सभी परमात्मीय गुण होते हुए भी वह एक पशु के समान नीच वृत्तियों मे फसा हुआ है | जिस आदमी में ईश्वरीय अंश विद्यमान है, वही अपने सुख से हमें अपने पतित जीवन को दुख भरी गाथा सुनाता है !! यह कितने दुख की बात है | जिस, आदमी का शरीर सूजा हुआ, भद्दा, लजजा युक्त, दुखी और रुग्ण है, व ईस सत्य की घोषणा करता है कि जो आदमी विषय वासनाओं की तृप्ति में अन्धा धुन्ध, बिना आगा पीछा देखे लगा रहता है, वही शारीरिक अपवित्रताओ, यातनाओ को सहता है |
वास्तव में आदर्श मनुष्य वही है, जो समस्त पाशविक वृत्तियों तथा विषय वांसनाओं को रखता हुआ भी उनके उपर अपने सुसंयता तथा सुशासक मन से राजय करता है, जो अपने शरीर का स्वामी है, जो अपनी समस्त विषय वासनाओ की लगाम की अपने द्रढ तथा धैर्य युक्त हाथो में पकड कर अपनी प्रत्येक ईन्द्रिय से कहता है कि तुम्हे मेरी सेवा करनी होगी, न कि मालिकी | र्मै तुम्हारा सदुपयोग करुंगा दुरुपयोग नहीं | एसे ही मनुष्य अपनी समस्त पाशविक वृत्तिओ तथा वासनाओ की शक्तियों को देवत्व में परणित कर सकते है - विलास मृत्यु हे और संयम जीवन है | सच्चा, रसायन शास्त्री वही है जो विषम वासनाओ के लोहे को आघ्यात्मिक तथा मानसिक शक्तियों के स्वर्ण में पलट लेता है |
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