वृद्धों की समस्याएं और समाधान
पहला काम तो यह कीजिए कि बुढ़ापे की इस अवस्था में जवानी के गुलछर्रे याद कर करके कूढना,छोड़िए क्योंकि ऐसा करने से आपको उन दिनों की अनुभूति होती रहेगी और वर्तमान की स्थिति उनके अनुकूल नहीं है इसलिए आपको और भी अधिक मानसिक कष्ट होगा। शरीर को जवानी में थका डाला गया है,मन विकारों के पास गिरवी रख दिया है।अधूरे काम आपको सांप के कांटे की तरह छिद रहे हैं। आप पछताते और मन ही मन कहते हैं "हाय मैं कुछ भी तो नहीं कर सका"! इस हाय तोबा,ताप और पश्चाताप को त्यागिए। जो कुछ थोड़ा बहुत कर सके हैं,उसी पर संतोष कीजिए और आगे के लिए अथवा पुनर्जन्म के लिए संस्कारों का मानसिक निर्माण कीजिए। इससे भी अच्छा यह है कि इसी स्थिति के अनुरूप जो कुछ भी कर सकें करने का प्रयत्न कीजिए, पर जो कुछ नहीं कर सके हैं अथवा जो कर नहीं सकते उसकी चिंता छोड़िए। चिंता बुढ़ापे के हाथ में पैनी छुरी ही समझिए।
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