जीवन के सारे अधिकार जब ईश्वर के हाथ सौंप देते हैं तो पूर्ण निश्चिंतता आ जाती है। कोई भय नहीं, कोई आकांक्षा नहीं। न कुछ दुःख न किसी प्रकार का सुख शेष रहता है।
पूर्ण तृप्ति और अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है। जब जीवन की बागडोर परमात्मा को सौंप देते हैं, तब उसे बुलाना भी नहीं पडता। वह स्वयं ही आकर भक्त के प्रत्येक अवयव में स्थित होकर अपना कार्य करने लगते हैं। इस स्थिति को ही पूर्ण समर्पण कहते हैं।
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