वृक्ष वसन्त ऋतु में पल्लव, पुष्प और फलों से सुशोभित होते हैं। मनुष्य अपने यौवन काल में पूर्ण आभा के साथ विकसित होता है।
वृक्षों को कई वसन्त बार-बार प्राप्त होते हैं, पर मनुष्य का यौवन वसन्त केवल एक बार ही आता है। इसके बाद असमर्थता और निराशा से भरी वृद्धावस्था और उसके पश्चात मृत्यु।
जिसने यौवन का सदुपयोग नहीं कर पाया, उनको हाथ मल-मलकर पछताना ही शेष रह जाता है। युवावस्था जीवन का वह अंश है, जिसमें उत्साह, स्फूर्ति, उमङ्ग, उन्माद और क्रियाशीलता या तरङ्गे प्रचण्ड वेग के साथ बहती रहती है।
आज तक जितने भी महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं, उनकी नींव यौवन की सुदृढ़ भूमि पर ही रखी गई है। बालकों और वृद्धों की शक्ति सीमित होने के कारण उनसे किसी महान कार्य की आशा बहुत ही स्वल्प मात्रा में की जा सकती है। यौवन सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
ईश्वर की दी हुई सबसे बड़ी अमानत है, जिसका समय रहते उत्तम से उत्तम उपयोग करना चाहिए। किसी भी देश और जाति का भाग्य उनके नवयुवकों के साथ रहता है। जिस समाज के युवक जागरूक, कर्तव्य परायण और देशभक्त हैं, वहीं सामूहिक उन्नति हो सकती है। जहाँ के युवकों में आलस्य, अकर्मण्यता, स्वार्थपरता और दुर्गुणों की भरमार होगी, वह देश-जाति कदापि उन्नति के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकती।
भारतीय नवयुवक यौवन की जिम्मेदारी को अनुभव करते हुए तुच्छ स्वार्थों को छोड़कर देश सेवा के पथ पर अग्रसर हों, इसकी आज ही सबसे बड़ी आवश्यकता है। (संकलित व सम्पादित)
अखण्ड ज्योति जून 1943 पृष्ठ 16
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