કલ્પવૃક્ષ

ૐ ભૂર્ભુવ:સ્વ: તત્સવિતુર્વરેણ્યં ભર્ગોદેવસ્ય ધીમહિ ધિયો યો ન: પ્રચોદયાત્ ||

निराश क्यों हुआ जाए ?

निराश क्यों हुआ जाए ?

प्रतिदिन रात आती है ।चारों ओर अंधकार छा जाता है । मानव जीवन के सारे काम बंद हो जाते हैं ।  रात और रात का अंधकार किसी को अच्छा नहीं लगता ।तब भी सभी लोग उसे सहन करते हैं  काटते हैं । रात आने पर न तो कोई घबराता है, न हाय-हाय करता है और  न रोता-चिल्लाता है । क्यों ? इसलिए कि काली रात के पीछे एक प्रकाशमान दिन तैयार रहता है । सभी को विश्वास रहता है कि रात बीतेगी और शीघ्र  ही प्रभात आएगा । चिंता और  दु:ख की बात तो तब हो, जब रात का अंत संभव न हो और प्रभात की संभावना न रहे ।

"निराशा" भी एक प्रकार का काला अंधकार होता है किंतु रात की तरह   इसका भी अस्तित्व भी  स्थायी नहीं होता । शीघ्र ही इसका समाप्त हो जाना निश्चित होता है । इसका अस्तित्व कुछ समय के लिए घिर आए काले  अंधेरे बादलों की तरह ही होता है, जो  शीघ्र ही अपने आप कट जाते हैं । निराशा मिटती है, उसके साथ ही आह्ललादकारी आशा अपना नव प्रकाश लेकर आती है यह प्रकृति  का एक "अटल" नियम  है ।

तब न जाने लोग निराशा का वातावरण आने पर बेतरह घबरा क्यों उठते हैं ? शीघ्र ही साहस हार जाते हैं और जीवन से ऊबने लगते हैं । एक ही रट लगाए रहते हैं-  "मैं जीवन से ऊब गया हूँ, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता । संसार मेरे लिए भय और  अंधकार की जगह बन गया है । मेरे चारों ओर मुसीबत ही मुसीबत घिरी खड़ी है । मैं बड़ा दु:खी हूँ,  मेरा जैसा दु:ख संसार में किसी पर न आया होगा ।

निराशा से  इस प्रकार बेतरह  घबरा उठने वाले लोगों को देख कर मानना पड़ता है कि किसी विद्वान की कही हुई यह बात ठीक है  कि "निराशा" को अपने ऊपर छाने देना एक प्रकार की कायरता है  । जो आदमी  कायर और कमजोर होता है, वह जरा सी प्रतिकूलता आने पर घबराकर निराश हो जाता है । उसमें कठिनाइयों का सामना करने का साहस नहीं होता और शीघ्र ही निराशा का शिकार बनकर संसार और जीवन को निस्सार और बेकार मान बैठता है ।

"मनोविकार" सर्वनाशी महाशत्रु- पृष्ठ-८
पं.श्रीराम शर्मा आचार्य

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યુગક્રાંતિના ઘડવૈયા પં. શ્રીરામ શર્મા આચાર્ય

યુગક્રાંતિના ઘડવૈયા પં. શ્રીરામ શર્મા આચાર્યની કલમે લખાયેલ ક્રાંતિકારી સાહિત્યમાં જીવનના દરેક વિષયને સ્પર્શ કરાયો છે અને ભાવ સંવેદનાને અનુપ્રાણિત કરવાવાળા મહામૂલા સાહિત્યનું સર્જન કરવામાં આવ્યું છે. તેઓ કહેતા “ન અમે અખબારનવીસ છીએ, ન બુક સેલર; ન સિઘ્ધપુરૂષ. અમે તો યુગદ્રષ્ટા છીએ. અમારાં વિચારક્રાંતિબીજ અમારી અંતરની આગ છે. એને વધુમાં વધુ લોકો સુધી ૫હોંચાડો તો તે પૂરા વિશ્વને હલાવી દેશે.”

દરેક આર્ટીકલ વાંચીને તેને યથાશક્તિ–મતિ જીવનમાં ઉતારવા પ્રયત્ન કરશો તથા તો ખરેખર જીવન ધન્ય બની જશે આ૫ના અમૂલ્ય પ્રતિભાવો આપતા રહેશો .

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