एकाग्रताउपासना के लिए अत्यंत उपयोगी
"उपासना" में "एकाग्रता" पर बहुत जोर दिया गया है । ध्यान-धारणा का अभ्यास इसीलिए किया जाता है कि मन की अनियंत्रित भगदड़ करने की आदत पर नियंत्रण स्थापित किया जाए और उसे तथ्य विशेष पर केंद्रित होने के लिए प्रशिक्षित किया जाए ।
"एकाग्रता" एक उपयोगी सत्प्रवृत्ति है । मन की अनियंत्रित कल्पनाएँ, अनावश्यक उड़ानें उस उपयोगी विचार शक्ति का अपव्यय करती हैं, जिसे यदि लक्ष्य विशेष पर केंद्रित किया गया होता तो गहराई में उतरने और महत्वपूर्ण उपलब्धता प्राप्त करने का अवसर मिलता । *यह "चित्त" की चंचलता ही है, जो मन:संस्थान की दिव्य क्षमता को ऐसे ही निरर्थक गँवाती और नष्ट-भ्रष्ट करती रहती है ।
संसार के वे महामानव जिन्होंने किसी विषय में पारंगत प्रवीणता प्राप्त की है या महत्वपूर्ण सफलताएँ उपलब्ध की हैं, उन सबको विचारों पर नियंत्रण करने, उन्हें अनावश्यक चिंतन से हटाकर उपयोगी दिशा में चलाने की क्षमता प्राप्त रही है ।
इसके बिना "चंचलता" की वानरवृत्ति से ग्रसित व्यक्ति न किसी प्रसंग पर गहराई के साथ सोच सकता है और न किसी कार्यक्रम पर देर तक स्थिर रह सकता है । शिल्प, कला, साहित्य , शिक्षा, विज्ञान, व्यवस्था आदि महत्वपूर्ण सभी प्रयोजनों की सफलता में एकाग्रता की शक्ति ही प्रधान भूमिका निभाती है । "चंचलता" को तो असफलता की सगी बहन माना जाता है । "बाल चपलता" का मनोरंजक उपहास उड़ाया जाता है । वयस्क होने पर भी यदि कोई चंचल ही बना रहे, विचारों की दिशा धारा बनाने और चिंतन पर नियंत्रण स्थापित करने में सफल न हो सके तो समझना चाहिए आयु बढ़ जाने पर भी उसका मानसिक स्तर बालकों जैसा ही बना हुआ है । ऐसे लोगों का भविष्य उत्साहवर्धक नहीं
आत्मशक्ति से युगशक्ति का उद्भव- पृष्ठ-३६
पन्डित श्रीराम शर्मा आचार्य
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