आत्मविश्वास जगाइये
जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल होने के लिए "आत्मविश्वास" की आवश्यकता होती है ।अच्छे से अच्छा तैराक भी आत्मविश्वास के अभाव में किसी नदी को पार नहीं कर सकता । वह बीच में फँस जायेगा, नदी के प्रवाह में बह जाएगा, अथवा हाथ पैर पटक कर वापिस लौट आएगा । यही बात भवसागर पार करने में लागू होती है । जीवन में अनेकों कठिनाइयाँ, उलझनें, अप्रिय परिस्थितियाँ आती रहती हैं ।
इन झंझावातों में कठोर चट्टान की तरह अपनी राह पर अडिग रहने के लिए "आत्मविश्वास" की आवश्यकता होती है ।
लक्ष्य जितना बड़ा होगा, मार्ग भी उतना ही लंबा होगा और अवरोध भी उतने ही अधिक आएँगे । इसलिए उतने ही प्रबल "आत्मविश्वास" की आवश्यकता होगी । संसार भी "आत्मविश्वासी" का समर्थन करता है ।
"आत्मविश्वासी" के चेहरे पर आकर्षण बनकर फूट पड़ता है, जिससे पराए भी अपने बन जाते हैं । अनजान भी हमराही की तरह साथ देते हैं । विपरीत परिस्थितियाँ भी "आत्मविश्वासी" के लिए अनुकूल परिणाम पैदा करती है ।
"आत्मविश्वास" का मूल स्वरुप है "आत्मसत्ता" पर विश्वास करना । जिसे अपनी आत्मा की अजेय शक्ति महानता पर विश्वास है, जो अपने जीवन की सार्थकता, महत्ता, महानता स्वीकार करता है, उसी में "आत्मविश्वास" का स्रोत उमड़ पड़ता है, वही जीवन पथ के अवरोधों, कठिनाइयों को चीरता हुआ, राह के रोड़ो को धकेलता हुआ, अपना मार्ग स्वयं निकाल लेता है । प्रकृति भी "आत्मविश्वासी" पुरुष का साथ देती है, अपने नियमों का व्यतिरेक करके भी । अपने आप को तुच्छ, अनावश्यक समझने वाले संसार सागर में तिनके की तरह कभी इधर कभी उधर थपेड़े खाते हैं । जिन्हें अपनी आत्मसत्ता, अपने महान अस्तित्व का बोध नहीं, उन्हें जीवन के समरांगण में हारना पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं । जो अपने आप को तुच्छ और अनावश्यक समझते हैं उन्हें दूसरे कैसे आवश्यक और महत्वपूर्ण समझ सकते हैं ? आत्मविश्वास के अभाव में संदेह, भय, चिंता आदि मनोविकार पनप उठते हैं और तब दूसरों का विश्वास, आत्मीयता, सहानुभूति भी प्राप्त नहीं होती ।
"मनोविकार" सर्वनाशी महाशत्रु- पृष्ठ-२८
पन्डित श्रीराम शर्मा आचार्य
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