કલ્પવૃક્ષ

ૐ ભૂર્ભુવ:સ્વ: તત્સવિતુર્વરેણ્યં ભર્ગોદેવસ્ય ધીમહિ ધિયો યો ન: પ્રચોદયાત્ ||

आत्मा के कल्याण को समझिये

नमस्कार मित्रो, ऋषि चिन्तन चैनल में आपका स्वागत है, आज का विषय है ।

आत्मा के कल्याण को समझिये

शरीर को सुख साधन मिलते रहें,  उसे पद और यश का लाभ मिला सो सही, पर शरीर ही तो सब कुछ नहीं है । "आत्मा" तो उससे भिन्न है । आत्मा की उपेक्षित स्थिति में पड़े रहने की दयनीय स्थिति ही बनी रहे, तो यह तो ऐसा ही हुआ जैसा मालिक को भूखा रखकर मोटर की साज-सज्जा में ही सारा समय, धन और मनोयोग लगा दिया जाए । इस भूल का दुष्परिणाम आज तो पता नहीं  चलता,  पर तब समझ में आता है जब जीवन संपदा छिन जाती है ।
भगवान के दरबार में उपस्थित होकर यह जवाब देना पड़ता है कि इस सुर दुर्लभ उपहार को जिस सद्प्रयोजन  के लिए दिया गया था वह पूरा किया गया या नहीं । यदि नहीं तो इसका दंड एक ही हो सकता है कि फिर भविष्य में वह उत्तरदायित्व पूर्ण अवसर न दिया जाए और पहले की ही तरह तुच्छ योनियों के लंबे चक्र में भटकने दिया जाए । मनुष्य में से अनेकों को इसी लंबी दुर्गति में फँसना पड़ता है और अपनी भूल पर पश्चाताप करना पड़ता है कि, जब अवसर था तब हम गहरी नींद में पड़े रहे-- इंद्रियों की वासना और मन की तृष्णा के नशे में इस कदर खोये रहे कि लोभ और मोह के अतिरिक्त और कुछ सूझ  ही नहीं पड़ा . यदि समय रहते आँख खुली होती तो कृमि-कीटकों  का सा पेट और प्रजनन के लिए समर्पित जीवन जीने की भूल न की गई होती । शरीर के अतिरिक्त आत्मा भी जीवन का एक पक्ष है और उसकी भी कुछ आवश्यकताएँ हैं, जिस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के लिए जो समय निकाला जाता है प्रयत्न किया जाता है,  'उसी को "उपासना प्रक्रिया" कहते हैं ।' आत्मा का स्वार्थ ही  वास्तविक स्वार्थ है । उसी को "परमार्थ" कहते हैं ।  परमार्थ का चिंतन -- उसके लिए बुद्धि का उद्बोधन, प्रशिक्षण जिन क्षणों में किया जाता है, वस्तुतः वही सौभाग्य भरे और सराहनीय क्षण हैं । यदि इस दृष्टि का उदय हो सके तो "उपासना" को नित्य कर्मो में सबसे अधिक आवश्यक अनिवार्य स्तर का माना जाएगा । वास्तविक "स्वार्थ" साधना के क्षण वही तो होते हैं ।

आत्मशक्ति से युगशक्ति का उद्भव- पृष्ठ-२४
पन्डित श्रीराम शर्मा आचार्य

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યુગક્રાંતિના ઘડવૈયા પં. શ્રીરામ શર્મા આચાર્ય

યુગક્રાંતિના ઘડવૈયા પં. શ્રીરામ શર્મા આચાર્યની કલમે લખાયેલ ક્રાંતિકારી સાહિત્યમાં જીવનના દરેક વિષયને સ્પર્શ કરાયો છે અને ભાવ સંવેદનાને અનુપ્રાણિત કરવાવાળા મહામૂલા સાહિત્યનું સર્જન કરવામાં આવ્યું છે. તેઓ કહેતા “ન અમે અખબારનવીસ છીએ, ન બુક સેલર; ન સિઘ્ધપુરૂષ. અમે તો યુગદ્રષ્ટા છીએ. અમારાં વિચારક્રાંતિબીજ અમારી અંતરની આગ છે. એને વધુમાં વધુ લોકો સુધી ૫હોંચાડો તો તે પૂરા વિશ્વને હલાવી દેશે.”

દરેક આર્ટીકલ વાંચીને તેને યથાશક્તિ–મતિ જીવનમાં ઉતારવા પ્રયત્ન કરશો તથા તો ખરેખર જીવન ધન્ય બની જશે આ૫ના અમૂલ્ય પ્રતિભાવો આપતા રહેશો .

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